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Rajasthan Culture GK
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Sawami Vivekanand

✨ संस्कृति का अर्थ होता हैं की समाज में पाए जाने वाले गुणों का समग्र रूप से संकलन करके उनका अनुपालन करने वाला एक समूह जो अपनी इस अनमोल धरोहर को सम्भाल कर अपने से अपनी आने वाली पीढ़ी में नियमित रूप से हस्तांतरित करता हो जिसमें सामाजिक वयवहार तथा उनके मनोभाव आदि शामिल हो सकते हैं । हम सामन्यतया कला को 3 भागो में विभाजित कर सकते हैं, देखकर की जाने वाली कला, दिखाकर की जाने वाली कला और साहित्य के रूप में प्रदर्शित की जाने वाली कला ।

Natykla ✥ व्यक्ति अपनी भाव भंगिमाओं को जिस माध्यम से प्रदर्शित करता है उस माध्यम को कला कहा जाता हैं तथा कला शब्द का सबसे पहले प्रयोग ऋग्वेद में हुआ हैं । किसी भी कला का नाम उसके मौलिक तत्व या कर्म के आधार पर ही होता है जैसे की चित्रकला में चित्र बनाकर कला का प्रदर्शन किया जाता है तो हस्तकला में हाथों की मदद से किसी कला का प्रदर्शन किया जाता है । संस्कृति को मुख्य रूप से 2 भागों में बांटा गया है, जिनमें से एक है शहरी संस्कृति जिसे वैदिक संस्कृति भी कहा जाता है तथा दूसरी हैं

✥ ग्रामीण संस्कृति जिसे लोक संस्कृति भी कहा जाता है । हस्तकला, ​​चित्रकला, स्थापत्यकला आदि लोक कला के अंतर्गत ही आने वाले टॉपिक हैं जिस्नका अध्ययन हमें राजस्थान की कला एवं संस्कृति में करना हैं ।

राजस्थान की हस्तकला

✥ हस्तकला लघु उद्योग श्रेणी की कला हैं जिसको राजस्थान लघु उद्योग निगम (RAJSICO) द्वारा सरंक्षण प्रदान किया जाता हैं । RAJSICO की स्थापना 3 जून 1961 को हुई थी । ऐसी कलाकृति या वस्तुएँ जिनका निर्माण हस्तशिल्पियों या कारीगरों द्वारा हाथ से किया जाता है जिसके अंतर्गत हम सोने-चांदी के आभूषण, लाख तथा कांच की चूड़ियां, पत्थर की मूर्तियां, घर के सजावटी सामान आदि को रख सकते हैं । बोरानाडा (जोधपुर) को राजस्थानी हस्तकला का केंद्र कहा जाता है तो वहीं जयपुर को हस्तकला का तीर्थ कहा जाता है । मीनाकारी हस्तकला को राजस्थानी हस्तकला की आत्मा कहा जाता हैं । राजस्थान सरकार हस्त निर्मित वस्तुओं को "राजस्थली" ब्रांड से बाजार में बेचती हैं ।
राजस्थान में स्थित शिल्पग्राम -

✥ शिल्प ग्राम से तात्पर्य ऐसे स्थल से हैं जहां पर शिल्पकारो को हस्त निर्मित वस्तुओं को बनाने के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया जाता हैं । राजस्थान में कुल 3 शिल्पग्राम स्थित हैं -

i. हवाला शिल्पग्राम - उदयपुर

ii. जवाहर कला केंद्र - जयपुर

iii. पाल शिल्प ग्राम - जोधपुर

राजस्थान की हस्तकला के विभिन्न प्रकार -

1. थेवा कला -

comming soon.

राजस्थान स्थापत्य कला

✥ दुर्गों की संख्या की दृष्टि से राजस्थान का देश में तीसरा स्थान हैं तथा राजस्थान में सर्वाधिक दुर्ग जयपुर जिले में अवस्थित हैं । चाणक्य ने राज्य के सात प्रमुख अंगों में भी दुर्ग का उल्लेख किया हैं । चाणक्य के सप्तांग सिद्धांतो में राजा, जन, अमात्य, कोष, दुर्ग, मित्र तथा सेना शामिल हैं । चाणक्य ने दुर्गो को चार श्रेणियों में विभक्त किया हैं जिसमे ओदक दुर्ग, धान्व दुर्ग, पर्वत दुर्ग तथा वन दुर्ग शामिल हैं । दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य द्वारा लिखित शुक्र नीति में दुर्गों की कुल 9 श्रेणियों का वर्णन किया गया हैं जो कि निम्न प्रकार से हैं -

1. जल दुर्ग - ऐसा दुर्ग जो चारों और से जल से घिरा हुआ हो, उसे जल दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता हैं ।

2. गिरी दुर्ग - ऐसा दुर्ग जो किसी दुर्गम पहाड़ी पर अवस्थित हो, उसे गिरी दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता हैं ।

3. एरण दुर्ग - ऐसा दुर्ग जो जंगल के बीचों बीच अवस्थित हो तथा वहां पहुंचना दुर्गम हो, ऐसे दुर्ग को एरण दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता हैं ।

4. धान्वन दुर्ग - ऐसा दुर्ग जो चारों तरफ मरुस्थल से घिरा हुआ हो, उसे धान्वन दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता हैं ।

5. वन दुर्ग - ऐसा दुर्ग जिसके चारों और दूर-दूर तक वन हो, ऐसे दुर्ग को वन दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता हैं ।

6. पारिध दुर्ग - ऐसा दुर्ग जिसके चारों तरफ परकोटा बना हुआ हो, उसे पारिध दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता हैं ।

7. पारिख दुर्ग - ऐसा दुर्ग जिसके चारों तरफ खाई बनाकर उसकी सुरक्षा की गई हो, ऐसे दुर्ग को पारिख दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता हैं ।

8. सैन्य दुर्ग - ऐसा दुर्ग जिसमें सैन्य शक्ति का निवास हो, इस प्रकार के दुर्ग को सैन्य दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता हैं ।

9. सहाय दुर्ग - ऐसा दुर्ग जिसको सहायता के उद्देश्यों से प्रयोग में लिया जाए, ऐसे दुर्ग को सहाय दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता हैं ।

✨ अब हम राजस्थान के प्रमुख दुर्गों का विस्तारपूर्वक अध्ययन करते हैं -

✥ चित्तौड़गढ़ दुर्ग

chitor ✥ चित्तौड़गढ़ जिले में अवस्थित मेसा पठार पर बना यह किला गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है जिसकी समुद्र तल से औसत ऊंचाई 1850फीट हैं । गम्भीरी और बेड़च नदियों के संगम पर बने इस किले का निर्माण मौर्य शासक चित्रांगद मौर्य ने करवाया था जिसने इस दुर्ग का नाम चित्रकुट रखा था । कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार 734ईस्वी में इस किले को बाप्पा रावल ने मौर्य शासक मान मोरी से जीत लिया तथा नागदा के बाद इसको अपनी राजधानी बनाया । इस दुर्ग का अधिकांश निर्माण कार्य महाराणा कुम्भा ने पूर्ण करवाया जिस कारण उनको इस दुर्ग का आधुनिक निर्माता कहा जाता हैं । क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राजस्थान का सबसे बड़ा दुर्ग हैं जिसकी कुल लम्बाई 8किमी व चौड़ाई 2किमी हैं । इस किले से ही जुड़ी एक लोकोक्ति प्रचलित हैं की "गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकि सब गढ़ैया" । यह दुर्ग राजस्थान का दक्षिणी पूर्वी प्रवेश द्वार, मालवा का प्रवेश द्वार, दुर्गों का सिरमौर, राजस्थान का गौरव आदि उपनामों से विख्यात हैं । यह राजस्थान का सबसे बड़ा आवासीय किला (लिविंग फोर्ट) हैं जो की व्हेल मछली के आकारनुमा हैं । इस दुर्ग पर पहला आक्रमण 8वीं शताब्दी में अफ़ग़ानिस्तान के सूबेदार मामु के द्वारा किया गया था । इस दुर्ग के सात प्रमुख प्रवेश द्वार पाडन पोल, भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोड़ला पोल, लक्ष्मण पोल तथा राम पोल हैं । इस दुर्ग में तीन साके क्रमश: 1303, 1534 व 1568ईसवी में हुए थे

✥ कुम्भलगढ़ दुर्ग

chitor ✥ राजसमन्द जिले के सादड़ी गांव में स्थित यह दुर्ग जरगा पहाड़ी पर बना हुआ हैं तथा यह एक गिरी दुर्ग हैं । मौर्य शासक सम्प्रति मौर्य द्वारा निर्मित मच्छन्दर गढ़ दुर्ग के भग्नावशेषो पर निर्मित इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने अपने शिल्पी मंडन की देखरेख में करवाया तथा इसका नाम कुम्भा ने अपनी पत्नी कुम्भल देवी के नाम पर कुम्भलगढ़ रख दिया । यह दुर्ग सन 1448 से 1458 तक 10वर्ष में बनकर पूर्ण हुआ हुआ था । इस दुर्ग के प्रमुख प्रवेश द्वार हल्ला पोल/राम पोल, नींबू पोल/हनुमान पोल, गणेश पोल, चौहान पोल, भेरव पोल, विजय पोल तथा पागड़ा पोल है । दोहरे परकोटे युक्त इस दुर्ग की दीवार पर एक साथ 4 घुड़सवार चल सकते हैं तथा इस दीवार की कुल लम्बाई 36 किलोमीटर है जिसे भारत की महान दीवार की संज्ञा दी गई है । इस दुर्ग के भीतर एक लघु दुर्ग है जिसका नाम कटारगढ़ है जो महाराणा कुम्भा का निवास स्थल हुआ करता था । कटारगढ़ दुर्ग के बारे में अबुल फजल ने लिखा है की यह इतनी बुलंदी पर बना हुआ हैं कि इसके नीचे कोई व्यक्ति खड़ा होकर ऊपर की ओर देखता हैं तो उस व्यक्ति के सिर की पगड़ी पीछे की ओर गिर जाती हैं । इसी कटारगढ़ के बादल महल* में स्थित जनाना भाग के जूनी कचहरी कक्ष में 9 मई 1540 (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया) को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था ।
* = बादल महल 2 भागो में विभक्त है जिसके एक भाग का नाम मर्दाना महल है और दूसरे भाग का नाम जनाना महल और जनाना महल भी दो कक्षों में विभक्त है जिसमें एक कक्ष का नाम सणगार कक्ष तथा दूसरे का नाम जूनी कचहरी है ।

✥ जैसलमेर दुर्ग

jaisl जैसलमेर दुर्ग की नींव 12 जुलाई 1155 को त्रिकुट पहाड़ी पर राव जैसल ने इनसाल ऋषि के आशीर्वाद से रखी थी तथा इनके उत्तराधिकारी सालिवाहन द्वितीय के शासन काल में यह दुर्ग बनकर तैयार हुआ था । इस दुर्ग को स्वर्ण गिरी उपनाम से भी जाना जाता है जिसका प्रमुख कारण है कि यह दुर्ग सूर्य के समक्ष स्वर्णिम आभा बिखेरता हैं । इस दुर्ग पर अभिनेता सत्यजीत रे ने 'सोनार दुर्ग' नाम से एक फिल्म का निर्माण किया था । इस दुर्ग के बारे में कहा जाता है कि यह दुर्ग दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता हैं मानो रेत के समुन्दर में कोई जहाज लंगर डाले खड़ा हैं, इसी कारण से इस दुर्ग को रेगिस्तान का गुलाब भी कहा जाता हैं । इसके अलावा इस दुर्ग को राजस्थान का अंडमान, गलियों का दुर्ग, भाटी भट किवाड़, सोनगिरि दुर्ग आदि उपनामों से भी जाना जाता हैं । इसी दुर्ग से संबंधित एक लोकोक्ति प्रसिद्ध हैं 'गढ़ दिल्ली गढ़ आगरो अधगढ़ बीकानेर, भलो चिणायो भाटिया सिरे गढ़ जैसलमेर' । इस दुर्ग की दीवरों में कुल 99 बुर्ज है तथा यह दुर्ग दोहरे परकोटे से घिरा हुआ है जिसे कमरकोट कहा जाता हैं । इसी दुर्ग में राजस्थान का सबसे बड़ा बादल महल स्थित है जिसे 'ताजिया टावर' के नाम से जाना जाता हैं । विश्व का सबसे बड़ा भूमिगत संग्रहालय इसी दुर्ग में स्थित है जिसका नाम 'जिन दत शुरी जैन भंडार' है तथा इस संग्राहलय के ऊपर एक जैन मंदिर भी बना हुआ हैं । इस दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार अखे पोल/अक्षय पोल से हर वर्ष माघ पूर्णिमा को दीपक जलाकर मरू महोत्सव का शुभारम्भ किया जाता हैं । इसी दुर्ग में जैसलू कुआं स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से इस कुएं का निर्माण किया था । इस दुर्ग के निर्माण में मिट्टी या चूने का प्रयोग नहीं किया गया हैं । इस दुर्ग की छतों को काष्ठ से निर्मित किया गया हैं तथा दीमक से बचाने के लिए उस पर गौमूत्र व गोबर से लेप किया गया हैं ।

राजस्थान की साहित्य कला

जानकारी जल्द ही उपलब्ध होगी ...

राजस्थान की चित्रशैलिया

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राजस्थान के लोक नृत्य

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प्रमुख लोकदेवी-देवता

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