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History of Rajasthan
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Sawami Vivekanand

राजस्थान की सबसे प्राचीनतम मेवाड़ रियासत का इतिहास अपने आप में गौरवमय रहा है जिस पर राजपूतों की 2शाखाओं ने करीब 1200वर्षो तक शासन किया जोकि गहलोत और सिसोदिया शाखा है । Mewar मेवाड़ को पहले मेदपाट, प्राग्वाट, शिवि जनपद आदि नामो से जाना जाता था जिसकी राजधानी 'नगरी' थी जो वर्तमान में चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित हैं । 1303ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर आक्रमण करके गेहलोत वंश के निवर्त्तमान शासक रावल रतन सिंह से मेवाड़ की रियासत को कुछ समय के लिए राजपूतो से छीन ली, आगे चलकर सिसोदिया शाखा के हमीरदेव ने मुहमद तुगलक को परास्त करके मेवाड़ को पुनः आजाद करवा लिया ।

1303ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी ने रावल शाखा का पूरी तरह से अंत कर दिया । प्रारंभिक समय में मेवाड़ की सीमा उत्तर पूर्व में बयाना दक्षिण में रेवाकंठ तथा मणिकंठ पश्चिम में पालनपुर तथा दक्षिण पश्चिम में मालवा तक फैली हुई थी । राजपूत शब्द की उत्पति से पूर्व क्षत्रिय शब्द का प्रयोग हुआ करता था हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद 7वी शताब्दी में राजपूत शब्द की उत्पति हुई मानी जाती है । 7वी शताब्दी से 12वी शताब्दी तक का काल राजपूत काल कहलाता है । दिल्ली पर जिस वंश का शासन रहा वह शासन काल उस वंश का शासन काल कहलाता है । राजपूतों की उत्पत्ति से सम्बंधित सिद्धांत 1. इतिहासकार स्मिथ और कनिंघम महोदय के अनुसार राजपूत शक और कुषाण जाति के ही वंशज है । 2. इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राजपूत सीथियन जाति के वंशज है । 3. इतिहासकार गोरी शंकर ओझा के अनुसार राजपूत प्राचीन क्षत्रिय जाति के ही वंशज है 4. इतिहासकार चंद्रबरदाई के अनुसार राजपूत अग्निकुंड से पैदा हुए है जिसमे 4 जातियों की उत्पति मानी गई हैं प्रतिहार, चौहान, परमार, चालुक्य । 5. इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा और भंडारकर के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति ब्राह्मण जाति से हुई ।

गेहलोत / गुहिलोत राजवंश

कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार तत्कालीन गुजरात के वलभी सम्राट शिलादित्य पर अरब आक्रांताओं ने अक्रमण किया । उस वक्त उनकी पत्नी पुष्पावती माउन्ट आबू स्थित अम्बा देवी के मंदिर में दर्शन के लिए आई हुई थी । अम्बा देवी जिसे राजस्थान की वेष्णो ​​देवी कहा जाता है । वहां उसकी मुलाकात कमलावती से होती है ।

जब पुष्पावती अम्बा देवी के दर्शन के लिए आई हुई थी उस समय वो गर्भवती थी तथा वापस लौटते समय उसे सुचना मिली की अरबो के वलभी पर आक्रमण करने के विरोध में हुए युद्ध में उनके पति की मृत्यु हो गई हैं तथा उसने सतीत्व की रक्षार्थ सती होने का निर्णय लिया जिसका कमलावती ने विरोध किया की आप अभी गर्भवती हो ऐसा करना उचित नहीं होगा आपके लिए जिस्के चलते वापस लौटते वक्त मेवाड़ में स्थित एक गुफा में एक शिशु को जन्म दिया जिसे वो कमलावती की देखरेख में छोड़ कर खुद सती हो गयी तत्पश्चात उस शिशु का नाम उसके जनम स्थान के अनुरूप गुहादित्य रखा गया ।
1. गुहादित्य - एक बार गुहादित्य भील सैनिकों के साथ उंदरी गांव में खेल खेल रहे थे तभी वहां भील सेनिको के एक सरदार ने अपने खून से गुहादित्य का राजतिलक करके उनको अपना राजा बना दिया । उसके बाद लगातार मेवाड़ के शासकों का राजतिलक उंदरी गांव के भील सेनिको के सरदार के द्वारा Guhadity अपने खून से करने की प्रथा बन गई । गुहादित्य ने सन् 566ईसवी में गुहिल वंश की स्थापना की तथा इन्होने अपने राज्य की राजधानी नागदा (उदयपुर) को बनाया । गुहादित्य ने ही नागदा में सहस्त्र बाहु का मंदिर बनवाया जिसे वर्तमान समय में 'सास बहू का मंदिर' के नाम से जानते हैं इनके सम्बन्ध भील समुदाय के लोगो के साथ अच्छे थे तथा वे इनको अपना राजा मानते थे ।
2. नागादित्य - नागादित्य गुहादित्य की ही 8वी पीढ़ी के राजा हुए जिनके भील सैनिकों के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे । एक समय जब नागादित्य शिकार पर गए हुए थे उस वक्त भीलों ने उनका वध कर दिया । उसके बाद नागादित्य के साथियों ने उनके 3 वर्षीय बेटे काल भोज को वहां से सुरक्षित निकाल कर ऋषियों के पास भेज दिया । उसके बाद वो वहीं पर उन ऋषियों की शरण में रहकर पले बढे और वो ऋषियों की गायों को भी चराते थे ।
3. बाप्पा रावल / कालभोज - हरित ऋषि के आशीर्वाद से कालभोज ने 734ईसवी में मौर्य राजा मानमोर्य को हराकर गुहिल Bappaji साम्राज्य की स्थापना की, 1719ईसवी कि वेद्यनाथ प्रशस्ति में इसका उल्लेख मिलता हैं की हरित ऋषि के आशीर्वाद से साम्राज्य स्थापित किया । इन को गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है । इनको हरित ऋषि ने बाप्पा रावल की उपाधि प्रदान की । वहीं रणकपुर प्रशस्ति, कुम्भलगढ़ प्रशस्ति तथा आबू अभिलेख में बाप्पा रावल और कालभोज को अलग अलग वयक्ति बताया गया हैं । कविराजा श्यामलदास, जिनको मेवाड़ के शासक महाराणा सज्जन सिंह ने मेवाड़ के प्रामाणिक इतिहास को लिखने के लिए अधिकृत किया उन्होंने अपनी रचना वीर विनोद में बताया कि इनका मूल नाम बाप्पा रावल था जबकि इनको उपाधि कालभोज की दी गई थी ।

बाप्पा रावल के 16हाथ का दुपट्टा और 35हाथ की धोती हुआ करती थी तथा 32मण (1,280किलो) का खड़ग (तलवार) रखता था जिसके कारण सी वी वेध ने इनको चार्ल्स मार्टेन कहा हैं । मेवाड़ में सबसे पहले सोने के सिक्के इन्होने ही चलाए थे जिन पर कामधेनु, शिवलिंग, सूर्य को दंडवत प्रणाम करते हुए वयक्ति के चित्र देखने को मिलते हैं । बाप्पा रावल शिवजी के अनन्य भक्त थे इन्होने उदयपुर के पास स्तिथ कैलाशपुरी में एकलिंगनाथ जी के मंदिर का निर्माण भी करवाया था । वो अपने राज्य से बाहर जाते वक्त एकलिंगनाथजी की अनुमति लेकर जाया करते थे जिसे आस्कान या आस्का लेना कहा जाता हैं ।

कैलाशपुरी में ही एकलिंगनाथजी मंदिर पाशुपत संप्रदाय की प्रधान पीठ है जिसके प्रवर्तक लकुलीश मुनि हैं । नागदा में 753ईस्वी में इनका निधन हो गया यहीं पर इनकी समाधी बनी हुई हैं ।
Note : इसी वंश में आगे चलकर एक और राजा बने जिनका नाम भी कालभोज था जिसके पिता का नाम महेन्द्र द्वितीय था ।
4. अल्लहट - इन्होने नागदा के स्थान पर आहड़ को अपनी नई राजधानी बनाया । इन्होने ही आहड़ में वाराह मन्दिर का निर्माण करवाया । इन्होने जगत अम्बिका माता के मंदिर का निर्माण करवाया जिसे मेवाड़ का खजुराहो कहते हैं । इनके पिताजी का नाम भरत भट्ट द्वितीय था । मेवाड़ में सबसे पहले नौकरशाही का गठन इन्हीं के द्वारा किया गया । अल्लहट ने हुण जाति की राजकुमारी हरियादेवी के साथ विवाह किया जो की राजस्थान का पहला अंतरराष्ट्रीय विवाह है ।
5. रण सिंह - इनके 2 पुत्र हुए जिसमे से राहप सिसोदा गावं में जाकर बस गए जिनका वंश आगे चलकर सिसोदिया कहलाया तथा क्षेम सिंह आहड़ में ही निवास कर रहे थे ।
6. सामंत सिंह - इन पर कीर्तिपाल चौहान नैं आक्रमण किया जिसके कारण इन्होने अपनी राजधानी बड़ौदा को बनाया जिसे बाद में इनके भाई ने बदलकर पुनः आहड़ को अपनी राजधानी बना दिया । सामंत सिंह तराइन के द्वितीय युद्ध में मारे गए ।
7. जेत्र सिंह - 1227ईसवी को इल्तुतमिश ने नागदा पर आक्रमण किया जिसमे जेत्र सिंह विजयी हुए, जिसे इतिहास में भूताला युद्ध के नाम से जाना जाता हैं । जेत्र सिंह ने अपनी राजधानी को चित्तौड़गढ़ स्थानान्तरित कर दिया । इनके दो सेनापति बालक तथा मदन थे । 1248ईसवी में जेत्र सिंह ने नासिरुद्दीन मोहम्मद को पराजित किया । इनका शासन काल मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्ण काल कहलाता है । इनको गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने रण रसिक कहा है ।
8. तेज सिंह - इनके शासन काल में बलबन ने मेवाड़ पर आक्रमण किया । जालौर के शाछिंगदेव की पुत्री रूपा देवी से इनका विवाह हुआ । मेवाड़ चित्रकला शैली की शुरुआत तेजसिंह के समय हुई । मेवाड़ का प्रथम चित्रित जैन ग्रंथ श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णि इन्हीं के शासनकाल मे चित्रित हुआ । इन्होने परमभटार्क, महाराजाधिराज, परमेश्वर आदि उपाधियों को धारण किया ।
9. समरसिंह - इन्होने गुजरात को तुर्को से मुक्त करवाया जिस कारण इनको तुर्को का संघारक भी कहते हैं । इनके 2 पुत्र कुम्भकर्ण और रतनसिंह थे जिनमे से कुम्भकर्ण ने नेपाल में जाकर गुहिल वंश की नींव रखी ।
10. रतन सिंह - सन 1302 में समरसिंह के देहान्त के बाद रावल रतन सिंह चितोड़ की गद्दी पर आसीन हुए तथा इनका शासन काल 2 घटनाओं के कारण चर्चित रहा । इनके शासन काल में दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ गढ़ पर सन 1303 में आक्रमण किया और इसी आकर्मण के दौरान ही चित्तौड़ का पहला साका भी हुआ जिसमें रानी पद्मिनी सहित अनेक रानियों ने जौहर किया था तथा चित्तौड़ पर दिल्ली हुकूमत का आधिपत्य हो गया । अलाउद्दीन के चितौड़ पर आक्रमण करने के दो प्रमुख कारण थे जिसमे पहला कारण था उसकी विस्तारवादी नीति तथा दूसरा प्रमुख कारण था मालवा तथा गुजरात के रास्ते में चितौड़ का अवस्थित होना ।

इसके अतिरिक्त मलिक मोहमद जायसी ने अपनी कृति पद्मावत में वर्णन किया है कि अलाउद्दीन खिलजी रावल रतन सिंह की सर्वश्रष्ठ रानी पद्मिनी को प्राप्त करना चाहता था जिसकी सुंदरता के बारे में अलाउद्दीन को जानकारी रतन सिंह के दरबारियों में से एक राघव चेतन ने दी थी जो काले जादू को करने में सिद्धहस्त था ।

एक बार जब रतन सिंह को राघव चेतन के काले जादू व् टोना टोटका करने की बात का प्रमाण मिला तो रतन सिंह ने राघव चेतन को काले गधे पर बिठाकर नगर में घुमाया जिसका बदला लेने के लिए अलाउद्दीन को चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए पद्मिनी की सुंदरता का यशोगान खिलजी के समक्ष किया फलस्वरूप 1303 में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण करके चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया । खिलजी को चित्तौड़ पर विजय बहुत जल्दी ही प्राप्त नहीं हुई इसके लिए उसने तक़रीबन 8 महीनो तक चित्तौड़ के क़िले को घेर कर रखा तथा किले की दीवारों के सामानांतर बहुत बड़ी-बड़ी चौकियों का निर्माण करके उन पर मंजनिक नाम के यंत्रो को स्थापित किया ।

ये यंत्र किले पर पत्थरों के गोले दागने के लिए काम में लिए जाते थे । चित्तौड़ पर अधिकार करने के पच्छात अलाउद्दीन खिलजी ने इसका नाम बदलकर खिज्राबाद रख दिया तथा इस किले को अपने पुत्र खिज्र खान को सौंपकर खुद दिल्ली लौट गया । कुछ वर्षो के बाद अलाउद्दीन ने यह किला जालोर के कान्हड़ देव सोनगरा के भाई मुछाला मालदेव (मालदेव सोनगरा) को सौंप दिया ।

सिसोदिया राजवंश

राजा राहप ने सिसोदा गांव में सिसोदिया राजवंश की नींव रखी थी जबकि इस वंश के वास्तविक संस्थापक हम्मीर देव सिसोदिया थे । सिसोदा ठिकाने के लक्ष्मण देव सिसोदिया सहित उनके सात पुत्र चितोड़ के प्रथम साके में वीरगति को प्राप्त हो गये थे जिनमे से अरिसिंह के पुत्र राणा हम्मीर देव वो प्रतापी शासक हुए जिन्होंने 1326 में चित्तौड़गढ़ के किले को मालदेव से युद्ध करके जीत लिया तथा उसे अपनी राजधानी बना दिया । सिसोदिया राजवंश के शासक अपने नाम से पूर्व राणा शब्द का प्रयोग किया करते थे 1. राणा हम्मीर देव - comming soon...

गुर्जर प्रतिहार राजवंश

जानकारी जल्द ही उपलब्ध होगी ...

राठोड़ राजवंश

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चौहान राजवंश

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कच्छवाह राजवंश

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